चंद बातें — डॉ. दामोदर खड़से

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‘जीवन में किसी की उपस्थिति का एहसास रोज़ नहीं हो पाता। पर अनुपस्थिति का एहसास पल पल होता है।’—डॉ दामोदर खड़से, खिड़कियाँ  डॉ दामोदर खड़से जी हिंदी साहित्य के प्रमुख लेखकों में से एक हैं। इनके द्धारा लिखे गये लेख, कहानियाँ, कविताएँ, विभिन्न राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। विभिन्न राज्यों की साहित्य अकादमियों एवं स्वायत्त संस्थाओं द्धारा इन्हें विविध पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है।डॉक्टर दामोदर खडसे को ‘केंद्रीय हिंदी संस्थान’ ने ‘गंगाशरण सिंह पुरस्कार’ से सम्मानित किया है। ‘अब वहां घोंसले हैं’ (कविता संग्रह), ‘आखिर वह एक नदी थी’ (कथा संग्रह) व उपन्यास ‘खिड़कियाँ’ (वाणी प्रकाशन) और ‘बादल राग‘ (भारतीय ज्ञानपीठ) उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं। (आप खिड़कियाँ की पुस्तक समीक्षा यहाँ पढ़ सकते हैं।)   

   तो आइये, आज हम हमारे हिंदी मंच पर स्वागत करते हैं डॉ. दामोदर खड़से जी का और करते हैं उनसे चंद बातें — आपके लिखने की शुरुआत कैसे हुई? वो क्या चीज़ है जो आपको लिखने के लिए निरंतर प्रेरित करती है? लेखन की शुरुआत बचपन के एक मित्र कृष्ण गुप्ता से बिछुड़ने की उद्वेगता के कारण हुई। ग्यारवीं कक्षा में पढ़ रहा था और पिताजी के तबादले के कारण मुझे अंबिकापुर छोड़ना पड़ा। कृष्ण अत्यंत करीबी मित्र रहे हैं और उनसे अलग होना बहुत तकलीफ़देह रहा। फिर जो लिखा, उस समय मुझे कविता लगी। एक सिलसिला शुरू हो गया। मन की संवेदनाओं तक पहुँचने वाली घटनाएं, स्थितियां, विसंगतियां, रिश्ते, भीतरी उहापोह, सामाजिक विरोधाभास जैसी चीज़ें लिखने के लिए प्रेरित करती हैं। आपने कहानियाँ और कविताएं दोनों लिखीं हैं। एक लेखक के तौर पर, कहानी और कविता लिखने मैं क्या फर्क है? कविता में एक आवेग होता है, तेज़ बहाव में आती संवेदनाओं को शब्द में थामना होता है। कथ्य को आकर देने के लिए तत्कालिकता की मांग होती है और कविता बहने लगती है। जहाँ तक कहानियों का सवाल है, किसी प्रेरक तत्व से जब सामना होता है, तब भीतर ही भीतर विषय अपनी जगह बनता चला जाता है। पात्र और चरित्र चित्रण, आरम्भ और अंत की बुनावट शुरू हो जाती है। शैली का निर्धारण और कहानी से उठने वाली प्रतिध्वनियों का ध्यान रखना पड़ता है। कहानी से लगता है जैसे पाठक के साथ संवाद हो रहा है। और कविता स्वयं से संवाद का माध्यम बन जाता है। कविता स्वतः प्रवाहमान होती है और कहानी ठहरकर विचार श्रृंखला को पिरोती है। हिंदी भाषा को तीन शब्दों में कैसे परिभाषित करेंगे? व्यापक जनभाषा – हिंदी! अपनी आने वाली किताबों के बारे में कुछ बताना चाहेंगे? एक कविता संग्रह, ‘पेड़ कभी अकेले नहीं होते’ और संस्मरण, ‘कल की ही तो बात है’ प्रकाशन प्रक्रिया में है। लोकप्रिय मराठी कहानियों का संग्रह शीघ्र ही आने वाली है। एक उपन्यास पे भी काम कर रहा हूँ पर उसके बारे में अभी बात करना थोड़ी जल्दबाज़ी होगी। आपकी कहानियों के शीर्षक काफी रोचक हैं। अब बात करते हैं आपकी कहानियों और किरदारों की। एक लेखक के तौर पे, आपकी प्रेरणा आपके परम मित्र हैं, पर क्या आपकी सभी कहानियां और किरदार जीवन से जुडी घटनाओं से प्रेरित होते हैं ? कुछ हद तक। कहानियां या पात्र कोरी कल्पना नहीं होते। सामजिक रूप में संघर्षरत पात्र, रिश्तों में उलझे किरदार, अप्रत्याशित घटनाएं, किसी का घुप्प अकेलापन, स्त्रियों का संघर्ष, बदलते सामाजिक मूल्य, और जाने कितनी संवेदनाएं हैं जो प्रेरित करती हैं। मेरी कहानियों के पात्र अपनी ज़मीन पे खड़े होकर वर्तमान से जिरह करने की कोशिश करते हैं, वो सिर्फ कल्पनाओं पे आधारित नहीं हो सकते। आपके विचार में एक लेखक के लिए एक अच्छा पाठक होना कितना जरूरी है? आप किस तरह की किताबें पढ़ना पसंद करते हैं? अगर एक लेखक एक अच्छा पाठक हो तो वो अपनी वैचारिक दुनियां को व्यापक आयाम दे सकता है। दूसरे लेखकों का चिंतन, किसी भी लेखक के लिए मनन का स्रोत बन सकता है। और ये बहुत जरूरी है। मुझे हर तरह की किताबें पसंद हैं। साहित्य की हर विधा अपना एक अलग अस्तित्व लिए होती है। मुझे आत्मकथा बहुत आकर्षित करती है। कई बार ऐसा लगता है कि इसमें सारी विधाएँ समायी होती हैं। हिंदी के अलावा दूसरी भारतीय भाषाओं के साहित्य में भी मेरी रूचि है। क्या आप लिखने के लिए किसी ख़ास समय या नियम का पालन करते हैं?  किसी ख़ास समय में लिखने का कोई नियम नहीं है। सुबह ऊर्जा बहुत मिलती हैं और रात में एकांत। सामान्यतः, लिखने के लिए कागज़-कलम का उपयोग करता हूँ। सीधे कंप्यूटर पे काम करने का अभ्यास नहीं है अभी। हाँ, एक बात है। पहला ड्राफ्ट ही काफी समय ले लेता है। और लेखन को दूसरी-तीसरी बार मांझने में आलस्य आड़े आ जाता है। नए अथवा अभिलाषी लेखकों के लिए आपका क्या सन्देश होगा ? परिदृश्य प्रश्न निरंतर परिवर्तनशील होते है। नए लेखक अपने समय के नए प्रश्न लेकर आते हैं। वो अपने वर्तमान को समेटे होते हैं। जिस प्रकार परिवर्तन चिरंतन है, उसी प्रकार दृष्टि भी सतत सजग रहनी चाहिए। लिखना कदमताल नहीं है, बल्कि नए रास्ते, नयी मंजिल और नयी उम्मीदों की खोज होनी चाहिए। हर पीढ़ी पहली पीढ़ी का संशोदित संस्करण होती है। अभिलाषी लेखकों की कलम से उनकी वर्तमान की प्रतिध्वनियां उभरें और भविष्य की बेहतरी के लिए कुछ दिशाएं भी तय करें। Author(s): Dr Damodar KhadsePublisher: Continental PrakashanRelease: 2017Genre: Fiction/Marathi/HindiBuy this book from Amazon – Please buy this book via affiliate links and show us some love!अगर आप हिंदी लेखक हैं, और हमारे हिंदी मंच पर शामिल होना चाहते हैं, तो कृपया अपनी जानकारी यहाँ सबमिट करें। धन्यवाद।

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