
My book is an attempt to rediscover India : Ashutosh Mehndiratta
Ashutosh Mehndiratta was born and raised in New Delhi. He holds an MBA from the University of Alabama and has had a long career in
‘वो तिल नहीं, तिलिस्म थे। वो रोने आयी थी या प्यार जताने, ये तो पैक्स को भी नहीं पता था। उसे बस पता था ये पल उसके लिए सबसे ख़ास है।’
—‘लूज़र कहीं का’ पंकज दुबे जी एक लेखक, पटकथा लेखक एवं निर्देशक हैं। उन्होंने लंदन के कॉवेन्ट्री यूनिवर्सिटी से अप्लाइड कम्युनिएशन में ‘स्नातकोत्तर’ की डिग्री हासिल की है। उन्होंने लंदन में BBC World और भारत में TV Today ग्रुप के साथ काम किया है। इन्हें भारत सरकार के द्धारा नवोदित लेखक के सम्मान से नवाज़ा गया है। पंकज जी की ख़ास बात ये है की वो हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में लिखते हैं। उन्होंने अब तक तीन किताबें —‘लूज़र कहीं का’, ‘इश्कियापा’ एवं ‘लव करी’ —लिखीं हैं। हमारे हिंदी मंच पर हम उनका हार्दिक स्वागत करते है। आइये, उनसे करते हैं चंद बातें !
‘लूज़र कहीं का’, इश्कियापा! इन टायटल्स का ख़्याल कैसे आया? एक कहानी के लिए टायटल कितना महत्वपूर्ण होता है? किसी भी कहानी तक पाठकों का ध्यान खींचने के लिए उसके टायटल की बहुत अहम भूमिका होती है। अगर टायटल दिलचस्प न हो तो लोगों को उसके पन्ने पलटने में काफ़ी दिक्कत होती है। मैं अपनी भाषा और शैली में इस बात का ध्यान ज़रूर रखता हूँ कि वो आम बोलचाल की भाषा हो। उसमें समसामयिकता की ख़ुशबू हो। उसे सैनिटाइजर से नहलाया न गया हो। मेरी सभी किताबें चाहे वो ‘लूज़र कहीं का’ हो, या फिर ‘इश्क़ियापा’ या फिर ‘लव करी’, सब इसी सोच का नतीजा हैं।
एक लेखक के जीवन को कैसे परिभाषित करेंगें? क्या लेखक बनना ही आपका सपना था? दरअसल, मैं अपने आप को सिर्फ़ एक लेखक नहीं बल्कि एक क़िस्सागो मानता हूँ, एक स्टोरीटेलर। मीडिया के सभी फॉर्म्स अपनाने की कोशिश करता हूँ ताकि उनके माध्यम से अपने किस्सों को ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुंचा सकूं। किताबें सिर्फ़ साक्षरों तक सीमित रहतीं हैं जबकि उन कहानियों पर बनने वाली फिल्में , वेब सीरिज़ वगैरह दूर दूर तक जाती है। क्या आप लिखने के लिए किसी ख़ास नियम/ समय का पालन करते हैं? क्या आपको कभी ‘राइटर्स ब्लॉक’ जैसी समस्या का सामना करना पड़ता है? अगर हां, तो उसके लिए आप क्या करते हैं? मेरी मान्यता है कि ‘राइटर्स ब्लॉक’ एक मिथक है। कई बार मुझे महसूस होता है कि वो ‘आलस’ का एक रचनात्मक नाम मात्र है। आमतौर पर मैं लिखने के एक दिन पहले यह तय कर लेता हूँ कि अगले दिन क्या लिखने वाला हूँ। लिखने के दौरान कई बार मेरी ट्रेन अपनी पटरी से उतरती भी है, पूर्व निर्धारित रास्ते बदलती भी है लेकिन वैसा कम ही होता है। रोज़ नहीं लिखता। लिखने के दिनों में सुबह सवेरे लिखना पसंद भी है और सुविधाजनक भी लगता है। अपनी अगली किताब के बारे में कुछ बताना चाहेंगें? ‘एक आधा इश्क़’ —मेरी अगली किताब का नाम है ! मेरी पिछली सभी किताबों की तरह इस उपन्यास को भी मैं हिंदी और अंग्रेज़ी दोनों भाषाओं में लिख रहा हूँ। द्विभाषीय (Bilingual) लेखक होने के नाते दोनों भाषाओं में अपने लगातार बढ़ते रीडर्स का प्यार लगातार पाते रहने की ख़्वाहिश मुझसे कुछ अतिरिक्त मेहनत करवा लेती है। दिलचस्प टाइटल है! आखिर में नए अथवा अभिलाषी लेखकों को क्या संदेश देना चाहेंगें? नए या अभिलाषी लेखकों को सिर्फ़ ये कहना चाहूंगा कि पूरी बेबाक़ी और ईमानदारी से लिखें। अच्छा लिखने का सिर्फ़ एक ही मंत्र है और वो है निरंतर लिखते रहना। साथ ही लेखकों को ख़ुद को बहुत सिरियसली लेने की बजाए अपने आलोचकों को सिर आंखों पर रखना चाहिए और उनका नज़रिया और नापसंदी की वजह समझने की कोशिश करनी चाहिए। एक लेखक के तौर पर हमारी लेखन शैली और कथ्य का सफ़र एक छोटे से पौधे से पेड़ हो जाने की प्रक्रिया की तरह है। जैसे पौधे की विकास यात्रा में पानी, खाद, धूप, हवा का नियमित योगदान ज़रूरी है, ठीक वैसे ही लेखक को नियमित अभ्यास, अपने आलोचकों की ज़रूरी बातों पर गौर फरमाना, अपने आसपास के माहौल और किरदारों पर ध्यान रखना; खुद को महान समझने की भूल से बचना और खुद की बेवकूफ़ियों को समझ कर उस पर हँस पाने की हिम्मत रखना बुनियादी मूल्य हैं। 🙂अगर आप हिंदी लेखक हैं, और हमारे हिंदी मंच पर शामिल होना चाहते हैं, तो कृपया अपनी जानकारी यहाँ सबमिट करें। धन्यवाद।
Ashutosh Mehndiratta was born and raised in New Delhi. He holds an MBA from the University of Alabama and has had a long career in
Ultimately, the best choice for you will depend on your goals, resources, and personal preferences. It’s important to carefully research and consider all your options before making a decision.
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