पुस्तक समीक्षा: मुसाफ़िर कैफ़े — दिव्य प्रकाश दुबे

पुस्तक समीक्षा: मुसाफ़िर कैफ़े --- दिव्य प्रकाश दुबे

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‘हम सभी की जिंदगी में एक लिस्ट होती है। हमारे सपनों की लिस्ट, छोटी-मोटी खुशियों की लिस्ट।’ सच है — हम जाने कितनी आशाओं और सपनों को संजोते हैं। मगर क्या सारी आशाएं, सारे सपनें पूरे होते हैं? दिव्य प्रकाश दुबे द्धारा रचित, मुसाफिर कैफ़े ( हिंदी युग्म द्धारा प्रकाशित) कहानी है दो ऐसे किरदारों की जो बस यूं ही अचानक मिलते हैं, और फिर धीरे धीरे उन्हें ये एहसास होता है कि ये वो दो लोग हैं जो एक दुसरे को सबसे अच्छे से समझते हैं। मगर दोनों की अपनी सोच और अलग सपने हैं। अपने सपनों से लड़ते लड़ते दोनों कहाँ पहुंचते हैं? कैसा है उनका रिश्ता — प्यार या दोस्ती या फिर उससे भी परे? क्या है उनके इस अलग से रिश्ते की मंजिल? ये आप जानेंगे मुसाफिर कैफ़े में! ‘हम पहले कभी मिले हैं?’ ‘शायद!’ ‘शायद! कहाँ?’ ‘हो सकता है किसी किताब में मिले हों। ‘ ‘लोग कॉलेज में, ट्रेन में, होटल में, लिफ्ट में, कैफ़े में तमाम जगहों पर मिल सकते हैं, पर किताब में कोई कैसे मिल सकता है?’ ‘दो मिनट के लिए मान लीजिये। हम किसी ऐसी किताब के किरदार हों जो अभी लिखी ही नहीं गयी हो तो?’ मुसाफिर कैफ़े के ये दो किरदार हैं सुधा और चन्दर। और ये है उनकी अनोखी पर दिलचस्प प्रेम कहानी। सुधा-चन्दर मुझे याद दिलाते हैं ‘गुनाहों का देवता’ की। ऐसा तो नहीं की दोनों किताबों की कहानी एक सी है पर दोनों किताबों में रिश्तों का अनोखापन कुछ एक सा लगता है। ‘लाइफ को लेके प्लान बड़े नही सिंपल होने चाहिए. प्लान बहुत बड़े हो जाये तो लाइफ के लिये जगह नही बचती।’ पर ये बस एक प्रेम कहानी नहीं है। ये कहानी ज़िन्दगी के असल मायने ढूंढती नज़र आती है। एक कोशिश सपनों से लड़ने की, उन्हें पूरा करने की। किसी भी कहानी का सबसे आकर्षक हिस्सा क्या होता है? मेरे विचार से — उनके पात्र! और लेखक कितनी कुशलता से उन् पत्रों को उकेरता है ताकि आप उन पात्रों से एक जुड़ाव महसूस करें। मुसाफिर कैफ़े के पात्र और उनके आपस की बातें काफी दिलचस्प हैं।  जबतक आप इस कहानी को पढ़ते हैं, आप इसके किरदारों से एक जुड़ाव महसूस करते हैं। किरदारों की बेफिक्री आपको भाएगी तो थोड़ा परेशान भी करेगी। ‘बाहर से हमारी लाइफ जितनी परफेक्ट दिखती है, उतनी होती नहीं। परफेक्ट लाइफ भी कोई लाइफ हुई?’ दिव्य प्रकाश जी का कहानी कहने का अंदाज़ काफी हल्का-फुल्का है। जिसे हम कहते हैं ‘बोल चाल की भाषा। पर हलकी फुल्की भाषा में ही कई गहरी बातें कह दी गयी हैं। ‘सबसे ज्यादा वो यादें याद आती हैं जो हम बना सकते थे। ‘ हालाँकि, ये कहानी मुझे और ज्यादा पसंद आती अगर भाषा भी थोड़ी गहरी होती। कुछ बातें ऐसी होती हैं जो आपके दिल तक तब पहुँचती हैं जब उसकी भाषा में थोड़ी गहराई हो। कहानी का अंत अप्रत्याशित है, जो की एक कहानी के लिए सबसे अच्छी बात है। कुल मिलाकर, मुसाफिर कैफ़े एक मज़ेदार और दिलचस्प किताब है। अगर आप, प्रेम कहानी, या हलकी-फुल्की कहानी पढ़ना पसंद करते हैं, तो आपको मुसाफिर कैफ़े जरूर पढ़नी चाहिए।

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