
My book is an attempt to rediscover India : Ashutosh Mehndiratta
Ashutosh Mehndiratta was born and raised in New Delhi. He holds an MBA from the University of Alabama and has had a long career in
जहाँ आजकल के (ज्यादातर) पाठक अंग्रेजी किताबों की ओर ज्यादा झुकाव महसूस करते हैं, वहीँ ये जानना काफी दिलचस्प और सुखद है कि हिंदी साहित्य का एक महा उत्सव, वाणी प्रकाशन के सौजन्य से, यूनाइटेड किंगडम में हुआ। हिन्दी भाषा की विविधता, सौन्दर्य; डिजिटल और अंतराष्ट्रीय स्वरुप का उत्सव ‘हिन्दी महोत्सव 2018 युनाइटेड किंगडम के तीन बड़े शहरों में आयोजित किया गया। 28 जून से 1 जुलाई 2018 तक चार दिन तक चलने वाले हिन्दी महोत्सव का आयोजन ऑक्सफोर्ड, लन्दन और बर्मिंघम में सुनिश्चित किया गया। वाणी फाउंडेशन के अध्यक्ष अरुण माहेश्वरी ने कहा, ” यह हिन्दी महोत्सव भाषा और साहित्य की तकनीकी प्रगति को समर्पित है। हिन्दी महोत्सव वह स्थान है जहाँ हम अपनी ललित कलाओं का प्रदर्शन करें। बिना किसी प्रकार का संकोच किये। और यह स्थान वह भी है जहाँ पारम्परिक साहित्य और नये आधुनिक साहित्य को पाठकों तक पहुंचाया जाय। हमारी आने वाली पीढ़ी इस सुगन्धित वातावरण से गुलज़ार रहेगी। विश्व के सभी देशों में चाहे वह अमेरिका हो या अफ्रीका, क्षेत्रीय लोकभाषाओं की मृत्यु के भयानक आँकड़े मिलते हैं। इन्हीं सब घटनाओं ने मुझे हिन्दी महोत्सव के आयोजन को एक मूर्त रूप देने की सार्थक दिशा दी। यह हिन्दी महोत्सव हिन्दी भाषा को और समृद्ध करने की रचनात्मक पहल है।” कार्यक्रम की अध्यक्ष नीलिमा आधार डालमिया ने कहा कि प्रवासी लेखन की Graduating Ceremony है। इस महोत्सव में वाणी प्रकाशन की कुछ नयी किताबों की चर्चा की गयी। इन किताबों की खास बात ये रही कि इनमें प्रवासी लेखन की झलक मिलती है। वाणी फ़ाउण्डेशन के चेयरमैन अरुण माहेश्वरी ने प्रवासी लेखन पर वाणी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित तीन पुस्तकें डॉ. पद्मेश गुप्त की ‘प्रवासी पुत्र’, दिव्या माथुर द्वारा सम्पादित स्त्री प्रवासी लेखिकाओं की कहानियों का संग्रह ‘इक सफ़र साथ-साथ’ और अनिल शर्मा ‘जोशी’ की पुस्तक ‘प्रवासी लेखन : नयी ज़मीन नया आसमान’ की ओर ध्यान आकर्षित किया कि यह प्रवासी लेखन विधा के लिए नया अध्याय है। कार्यक्रम में अनिल शर्मा ‘जोशी’ की पुस्तक ‘प्रवासी लेखन : नयी ज़मीन नया आसमान’ तथा दिव्या माथुर की पुस्तक ‘सिया-सिया’ का विमोचन भी हुआ। नयी किताबों में कुसुम अंसल की ‘मेरी दृष्टि तो मेरी है’ और शशांक प्रभाकर की ‘लफ़्ज़ों के गाँव’ का भी लोकार्पण किया गया।
ऑक्सफोर्ड बिज़नेस कॉलेज के निदेशक व भारत के महासचिव भूतपूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी द्धारा ‘पद्मभूषण डॉ. मोटूरि सत्यनारायण पुरस्कार’ से पुरस्कृत डॉ. पद्मेश गुप्त ने अपने स्वागत सत्र में कहा कि हिन्दी भाषा को समर्पित कई कार्यक्रम यू.के. में होते आये हैं लेकिन यह पहली बार है कि हिन्दी महोत्सव के बैनर तले इन सभी कार्यक्रमों को एक बृहद आकार मिला है। डॉ. गुप्त ने सभी का स्वागत करते हुए इस बात को रेखांकित किया कि यूनाइटेड किंगडम में बच्चों को हिन्दी पढ़ाने का बीड़ा उन्होंने दशकों पहले उठाया था। एक और ख़ास चर्चा हुई यहाँ — ‘हिन्दी सिनेमा और साहित्य’ पर परिचर्चा’! साहित्य और सिनेमा एक दूसरे से काफी दिलचस्प तरीके से जुड़े हैं। हम पहले किताबें पढ़ते हैं तो उनपर बनी फिल्मों में हमारी उत्सुकता और बढ़ जाती है। स्वर्ण कमल से सुसज्जित लेखक यतीन्द्र मिश्र ने कहा, ‘साहित्य और सिनेमा भारतीय कांशसनेस की जुबान है और भारतीय संवेदना को एक सेतु में बाँधते हैं।’ कार्यक्रम में उपस्थित अजय जैन जो एक फ़िल्मकार हैं, और दादा साहेब फाल्के से सुसज्जित गुलज़ार के साथ निर्देशन कार चुके हैं, ने कहा, ‘साहित्य और सिनेमा के बीच का जो आलोचनात्मक रिश्ता है उससे ऊपर उठकर एक निर्देशक की भूमिका में जब कोई कलाकार आता है तो वह एक पतली पगडंडी पर चलता है जहाँ पर साहित्य और उसके सिनेमाई रूपान्तर के बीच सन्तुलन बनाने का काम उस निर्देशक के पास होता है। इसी काम को बखूबी उन्होंने गुलज़ार साहब से सीखा जब उन्होंने मुंशी प्रेमचन्द की तहरीरे कार्यक्रम में काम किया तो उन्हें यह समझ आया कि समय के साथ लेखक की परिकल्पना जो मूल कृति में की गयी, वह बदल जाती है, उसका सिनेमाई रूपान्तरण बदल जाता है इसलिए यह निर्देशक का काम है कि किसी साहित्यकार ने जिस प्रकार का परिवेश अपनी कृति में उजागर किया उसको सिनेमाई रूप से बड़े पर्दे पर जब कोई फ़िल्म निर्देशक लेकर जाता है तो किस तरीके से वो पूरे परिवेश को अपने साथ सँजोकर वैश्विक पटल पर दर्शाता है।’
Ashutosh Mehndiratta was born and raised in New Delhi. He holds an MBA from the University of Alabama and has had a long career in
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