पुस्तक समीक्षा: ऐसी वैसी औरत — अंकिता जैन

पुस्तक समीक्षा: ऐसी वैसी औरत --- अंकिता जैन

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‘मेरी खिड़की के सामने कोई खिलता ग़ुलाब, जो आज़ाद हो मुरझाने की हर ज़िद से, शायद, किसी रात की तेज़ आंधी, जो उड़ा ले जाए सारे टूटे-बिखरे ख्याल। या नर्म उँगलियों का सुकून जो सुलझा सके मेरे गुच्छे में उलझे सवाल।’  

अंकिता जैन जी की ऐसी वैसी औरत एक कहानी संग्रह है, और जैसा की इसके शीर्षक से प्रतीत होता है, ये एक महिला प्रधान कहानियों का संग्रह है — कहानियां, जो महिलाओं की मनोदशा को दर्शाती है। ये कहानियां उनके अंतर्द्वंद के इर्द-गिर्द घूमती हैं, और अंकिता जी बड़ी सरलता और रचनात्मकता से इन्हें सुलझाने की कोशिश करती नज़र आती हैं। इस संग्रह में कुल दस कहानियां हैं, और हर कहानी की अपनी ही एक कहानी है जो आपको दस अलग-अलग, मगर जानी-पहचानी सी, महिलाओं के जीवन के सफर पर ले जाएंगी। हो सकता है की उनकी भावनाएं उतनी जानी-पहचानी न भी लगे, वो इसलिए कि औरतें अक्सर अपनी भावनाएं उजागर नहीं करती, और यही कोशिश अंकिता जी ने की है।

‘क्यों, रंगीन होने का हक़ सिर्फ मर्दों होता है क्या? मैं आज भी प्रेम महसूस करती हूँ।’ ये कहना है मालिन भौजी  का। और फिर, एक दिन अचानक वो गायब हो जाती हैं। कहाँ हैं वो? ‘मालिन भौजी‘ एक अकेली, विधवा स्त्री कहानी है जो उनके किरायेदार के दृश्टिकोण से कही गयी है। मलिन भौजी अकेली जरूर है पर कमज़ोर नहीं। बावजूद इसके कि उनके अकेले रहने, उनके बेफिक्र स्वाभाव, और उनके मिलने जुलने वालों को लेकर लोग उनके जीवन के बारे में कई कयास लगाते हैं।  

‘उस नशे के आने के बाद, इरम की ज़िन्दगी में सबकुछ ठीक हो गया, माँ की याद, बाबा की मार, सब उस नशे के नीचे परत दर परत दबते चले गये।’ ‘प्लेटफार्म नंबर २’ एक मार्मिक कहानी है — कहानी मासूम इरम की जो अपने हालात की वज़ह से इस समाज में पनप रहे दुराचार और लालच का शिकार बन जाती है।  

‘उस दोस्ती की ज़ात आज सालों बाद दबी हुई चोट के मीठे दर्द की तरह उभरी है, जो अबतक मन की परतों के नीचे घुट-घुट कर सांस ले रही थी।’ ‘रूम नंबर फिफ्टी’ समलैंगिक रिश्तों पर उठने वाले सवालों पे एक सवाल है। इन रिश्तों में जीने वाले प्रेमियों की भावनाओं, बेबसी और दर्द को उजागर करती है।  

‘जहाँ से चली थी वापस वहीं पहुँच पाना तो अब संभव नहीं, लेकिन उसने आज माफ़ी माँगकर कई ज़ख़्मों पर मरहम लगाई है ‘गुनहगार कौन’ — ये कहानी है सना की जो अपनी शादीशुदा ज़िन्दगी में और उसके बाहर भी ठगी जाती है। और फिर ऐसे रास्ते पर निकल पड़ती है जहाँ से लौटना मुमकिन नहीं, कम से कम उसने तो ऐसा ही सोचा था।  

‘जिस हँसी ने उसकी आँखों में चमक पैदा की थी, अब उसकी जगह पर घृणा, चुभन, ग़ुस्सा और तकलीफ़ थे। उसके नज़रें चुराते ही मैं समझ गई कि उत्सुकता में शायद ग़लत सवाल पूछ बैठी।’ ‘धूल माटी की ज़िन्दगी’ मीरा, जो एक कामवाली बाई है, की ज़िन्दगी के दर्दनाक पहलु को कुरेदती है। मीरा एक हंसमुख दिखने वाली पर शायद अंदर से दुखी औरत है । ऐसा कौन सा दुःख छुपा है उसके अंदर? — उसकी मालकिन जानने की कोशिश करती है, और जब उसे सच्छाई पता चलती है, तो उसके होश उड़ जाते हैं।  

‘मेरे मन की पीर से अब तेरा क्या वास्ता, तेरी ख़ुशियों से मेरा ‘मैं’, हो चुका है लापता।‘ सत्तरवें साल की उड़ान — जैसा की कहानी के शीर्षक से पता चलता है, ये एक बुजुर्ग महिला की दास्ताँ है, जो उम्र एक ऐसे पड़ाव पर एक कठोर निर्णय लेती है जब अधिकतर लोग ‘जैसा है, ठीक है’ मानकर बैठ जाते हैं।  

‘जाने कितनी ही बार ख़ुद उसके माँ-बाप मुझे उसके पास अकेला छोड़कर गए हैं, ताकि वो घर में अकेली न रहे, लेकिन आज जब उसने मुझे ‘अकेले में’ मिलने बुलाया है, तो मेरा दिल ज़ोरों से धड़क रहा है।’ ‘एक रात की बात’ इस संग्रह की सबसे मार्मिक कहानी है जो एक अनोखे रिश्ते की दास्तान बयां करती हैं — जतिन और ज़ुबी के रिश्ते की। एक रिश्ता जो दोस्ती और प्यार दोनों से अलग है।  

‘वे अब वापस क्यों आ रही हैं… किसके लिए..?’ यह ऐसी बात थी जिसे मैं भूल गई थी या सच कहूँ तो याद होते हुए भी याद नहीं करना चाहती थी।’ ‘उसकी वापसी का दिन’ एक माँ की वापसी की कहानी है। है न अजीब? माँ की वापसी पर ये दुविधा क्यों?  

अगर मैं उन कहानियों की बात करूँ जो मुझे इतनी पसंद नहीं आयी तो वो होंगी — ‘छोड़ी हुई औरत’ और ‘भँवर’। ‘छोड़ी हुई औरत’ कहानी कहती है रज्जो की, जो अपने पति द्धारा त्याग दी गयी है। महज़ इस बात से कि वो एक ‘छोड़ी हुई’ औरत है, उसके जीवन में, उसके अपनों के व्यवहार में, अप्रत्याशित बदलाव आ जाता है। ये कहानी मुझे थोड़ी बिखरी हुई लगी। वहीँ ‘भंवर’ एक साधारण, कई दफ़ा देखी, सुनी जा चुकी कहानी है, और अन्य कहानियों के मुकाबले सपाट तरीके से कही गयी है।

कुल मिलाकर, ऐसी वैसी औरत एक अच्छा संग्रह है। औरतों के प्रति एक राय बना लेने के चिर परिचित अंदाज़ पर अनूठा प्रहार है। ये कहानियां एक पहेली की तरह आगे बढ़ती हैं। ये आपको उलझाए रखती है। आप समझते है की ये कहानी क्या कहना चाह रही है, मगर आप ये नहीं समझ पाते की ये कहाँ जा रही है। और यही इस कहानियों {या किसी भी कहानी} की सबसे बड़ी खूबी है। अगर कहानियां अलग है तो अंकिता जी के लिखने का अंदाज़ भी अलग है। ये अपने किरदारों से आपको बड़ी सहजता से जोड़ देती हैं। अगर आप लघु कथाएं पढ़ना पसंद करते हैं, अगर आप महिलाओं पर केंद्रित कहानियों में दिलचस्पी रखते हैं, तो आपको ये किताब ज़रूर पढ़नी चाहिए।

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