
Should I pay for publishing my book?
Ultimately, the best choice for you will depend on your goals, resources, and personal preferences. It’s important to carefully research and consider all your options before making a decision.
एक पाठक के तौर पर, मेरा झुकाव हमेशा महिला प्रधान कहानियों की तरफ रहा है। और मेरा मानना है कि लेखिकाएं इन कहानियों को बेहतर तरीके से कह पाती है। ख़ैर, ये सिर्फ मेरा विचार है, जो आपके विचारों से अलग हो सकता हैं।
आज हम बातें करेंगे हिंदी साहित्य की ५ प्रमुख लेखिकाओं के बारे में —
महादेवी वर्मा (26 मार्च 1907 – 11 सितम्बर 1987)
‘मैं नीर भरी दुःख की बदली! विस्तृत नभ का कोना कोना, मेरा कभी न अपना होना, परिचय इतना इतिहास यही, उमड़ी थी कल मिट आज चली।’ महादेवी वर्मा
महादेवी वर्मा जी का नाम सुनते ही मुझे उनकी दो कहानियां याद आ जाती हैं जो मैंने स्कूल में पढ़ी थीं — गिल्लू और सोना। दिल को छू जाने वाली इन कहानियों को पढ़कर ये पता चलता है की महादेवी वर्मा जी को जानवरों से कितना प्यार था।
महादेवी वर्मा आधुनिक हिंदी की सशक्त कवियित्रियों में से एक थीं, इसलिए उन्हें आधुनिक मीरा भी कहा गया। कवि निराला जी ने तो उन्हें हिंदी साहित्य के विशाल मंदिर की सरस्वती भी कहा। वे इलाहाबाद प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्रधानाचार्य और कुलपति रहीं और इसके विकास में उनका महत्वपूर्ण योगदान माना जाता है। 1932 में उन्होंने महिलाओं की प्रमुख पत्रिका ‘चाँद’ का कार्यभार संभाला। नीहार, रश्मि, नीरजा, सांध्यगीत, आदि उनकी प्रमुख कविता संग्रह हैं। ‘पथ के साथी’ और ‘मेरा परिवार’ उनके प्रमुख संस्मरण हैं। और जैसा की मैंने पहले कहा, गिल्लू और सोना उनकी लोकप्रिय कहानियां हैं जो उनके ही जीवन की घटनाओं से प्रेरित हैं। 1979 में साहित्य अकादमी की सदस्यता ग्रहण करने वाली वे पहली महिला थीं। 1988 में उन्हें मरणोपरांत भारत सरकार की पद्म विभूषण उपाधि से सम्मानित किया गया।
कृष्णा सोबती (18 फरवरी 1925)
‘अम्मा! पाँच-सात क्या, मेरा बस चले तो गिनकर सौ कौरव जन डालूँ, पर अम्मा, अपने लाडले बेटे का भी तो आड़तोड़ जुटाओ ! निगोड़े मेरे पत्थर के बुत में भी कोई हरकत तो हो!’
मित्रो मरजानी, कृष्णा सोबती
‘मित्रो मरजानी’ कृष्णा सोबती जी की सबसे लोकप्रिय किताब है। इनको उनके मुखर लेखन के लिए जाना जाता है। उनके बारे में कहा जाता है कि उनका ‘कम लिखना’ दरअसल ‘विशिष्ट’ लिखना है। साहित्य अकादमी और ज्ञानपीठ जैसे विशिष्ठ पुरस्कारों से सम्मानित कृष्णा जी ने 7 उपन्यास लिखे है जिनमे से कईओं का अंग्रेजी में अनुवाद किया गया है। मित्रो मरजानी, ज़िंदगीनामा और ऐ लड़की उनकी प्रमुख रचनाएं है। 2010 में उन्हें पद्मभूषण दिया जाना था मगर कृष्णा जी ने ये कहकर मना कर दिया कि, ‘एक लेखिका के तौर पर मुझे इन् प्रतिष्ठानों से दूरी बनाये रखनी चाहिए।’
ख़ास बात है!
मन्नू भंडारी (3 अप्रैल 1931)
‘गलती इसने की है तो सज़ा भी इसे दीजिये न, इसे यहाँ से भेजकर तो आप मुझे सज़ा दे रहीं है।’ स्वामी, मन्नू भंडारी
अगर मैं मन्नू जी के बारे में सोचूँ तो सबसे पहले मुझे उनके लघु-उपन्यास, स्वामी, की याद आती है जो मेरी पसंदीदा किताबों में से एक है। स्वामी दरअसल शरतचंद्र चट्टोपाध्याय की इसी नाम के लघु उपन्यास का रूपांतरण है। मन्नू भंडारी जी हिंदी साहित्य की प्रमुख कहानीकारों में से एक हैं। कई वर्षों तक दिल्ली के मिरांडा हाउस में अध्यापिका रहीं। इन्हे हिंदी अकादमी – दिल्ली के शिखर सम्मान, व्यास सम्मान जैसे कई अन्य पुरस्कारों से नवाज़ा गया है। ‘आपका बंटी’ और ‘महाभोज’ उनकी सबसे सफल और चर्चित उपन्यास हैं। अपने पति (और प्रख्यात लेखक) श्री राजेंद्र यादव के साथ मिलकर उन्होंने ‘एक इंच मुस्कान’ लिखी है जो एक दुखद प्रेम कथा है। साथ ही, उनकी लिखी ‘यही सच है’ पर आधारित ‘रजनीगंधा’ काफी चर्चित फिल्म है जिसे 1974 में सर्वश्रेठ फिल्म का पुरस्कार भी प्राप्त हुआ।
मृदुला गर्ग (25 अक्टूबर 1938)
“दुःख मत करना,”उसने कहा,”शायद कोई भी इन्सान एक ही समय में एक दूसरे को प्यार नहीं करते…जब एक करता है तो दूसरा नहीं और जब दूसरा करता है… देरी मुझसे हुई, मनु!” चित्तकोबरा, मृदुला गर्ग
मृदुला गर्ग जी हिंदी साहित्य की सबसे सफल और लोकप्रिय लेखिकाओं में से एक हैं। इन्होने 3 साल तक दिल्ली विश्वविद्द्यालय में अध्यापन भी किया है। इनके उपन्यास और कहानियों का कई भाषा में अनुवाद किया गया है। चितकोबरा, कठगुलाब, मैं और मैं, मिलजुल मन, टुकड़ा टुकड़ा आदमी (कहानी संग्रह), उसके हिस्से की धुप, छत पर दस्तक (कहानी संग्रह) आदि उनकी प्रसिद्ध रचनाएं हैं। 1988 में उन्हें हिंदी अकादमी द्धारा साहित्यकार सम्मान दिया गया। इसके अलावा इन्हें व्यास सम्मान जैसे अन्य कई सम्मानों से नवाज़ा गया है। उनके उपन्यास ‘मिलजुल मन’ को साहित्य अकादमी पुरस्कार (2013) से सम्मानित किया गया।
शिवानी (17 अक्टूबर 1923 – 21 मार्च 2003)
‘अम्मा ने ठीक ही कहा था। ऐसे उस अनजान शहर में किसी से कुछ पूछे, बस एक पत्र का सूत्र पकड़ चले आना एक बचपना मात्र था।’ ‘चल खुसरो घर अपने, शिवानी’
शिवानी जी का वास्तविक नाम गौरा पंत था। उनके बारे में अगर सोचूँ तो सबसे पहला उपन्यास जो मुझे याद आता है, वो है — स्वयंसिद्धा। जितना प्रभावशाली इस किताब का शीर्षक है, उतनी ही प्रभावशाली है इस कहानी की महिला पात्र। शिवानी जी की लेखनी में दो ख़ास बातें हैं — उनकी कहानियां महिला प्रधान होती हैं। और दूसरी उनकी कहानियों में कुमाऊं क्षेत्र के आसपास की लोक संस्कृति की झलक देखने को मिलती है। शिवानी जी ने कई उपन्यास, लघु उपन्यास व कहानियां लिखी हैं। कृष्णकली, चौदह फेरे, अतिथि, चल खुसरो घर अपने, सुरंगमा, मायापुरी, कैंजा आदि उनकी प्रमुख रचनाएं हैं। प्रसिद्ध लेखिका और पत्रकार मृणाल पण्डे जी उनकी पुत्री हैं।
हिंदी साहित्य में उनके योगदान के लिए, 1982 में शिवानी जी को पद्मश्री के सम्मान से अलंकृत किया गया।
क्या आपने इनकी किताबें/कहानियां पढ़ी हैं ?
Ultimately, the best choice for you will depend on your goals, resources, and personal preferences. It’s important to carefully research and consider all your options before making a decision.
In this workshop we will share with you our decade long experience of navigating the world of publishing in India (and abroad) . Suitable for authors looking to edit their manuscripts, publish their books and understand how to market their books effectively.
Well the hard part is over, you finished writing the book , now you have some kind of a contract and the book will be
‘To hire an editor or not?’ is a question that many writers writing their first book see confused about. As an editor, it is my
You are bound to have a lot in your mind when writing the first draft of your manuscript. The story must be in a hurry
Author and professor Vikram Kapur read an excerpt from ‘A Refugee Soul’ at the 75 Years of Partition event at India International Centre in New
Get all latest news, exclusive deals and Books updates.