
My book is an attempt to rediscover India : Ashutosh Mehndiratta
Ashutosh Mehndiratta was born and raised in New Delhi. He holds an MBA from the University of Alabama and has had a long career in
अगर आपकी हिंदी साहित्य में रूचि है, अगर आप ऐतिहासिक कहानियां पसंद करते है, तो ये पांच किताबें आपको अवश्य पढ़नी चाहिए।
वयं रक्षामः (आचार्य चतुरसेन – 1951):
‘अनुभव? अनुभव अक्सर बाँझ होते हैं। उनसे सिर्फ ग्रन्थ लिखे जा सकते हैं। किसी और को ज्ञान दिया जा सकता है। ‘
बिना किसी दुविधा के इस उपन्यास को मैं पहले क्रमांक पर रख रहा हूँ। ये उपन्यास रावण के जीवन पर आधारित है। रावण के प्रारंभिक जीवन से लेकर, उसके जीवन संघर्ष से गुज़रते हुए, उसके विजय अभियान को इस किताब में विस्तार पूर्वक दिखाया गया है। आचार्य चतुरसेन की लेखनी ऐसी है जैसे बहता हुआ जल। लगता ही नहीं की इस उपन्यास को प्रकाशित हुए ६७ साल हो गए हैं। उस काल में इतने आधुनिक विचार केवल आचार्य चतुरसेन के ही हो सकते थे।
ययाति (विष्णु सखाराम खांडेकर – 1963):
‘मैं स्वयं ही ठीक तरह से नहीं जानता, क्यों मैं अपनी आपबीती सुना रहा हूँ। क्या इसलिए की मैं एक राजा हूँ? क्या वास्तव में मैं एक राजा हूँ? नहीं, मैं एक राजा था। ‘
एक और ऐसा उपन्यास जिसमे आपको आधुनिक लेखन की छवि मिलेगी। पुरुवंश के पूर्वज ययाति के जीवन को उकेरती एक बेहतरीन रचना जो उनके जीवन के लगभग सभी अनछुए पहलुओं को उजागर करती है। ययाति की कहानी पुराणों में बेहद सतही है लेकिन इस उपन्यास में जिस तरह का घटनाक्रम बनाया गया है वो काबिले तारीफ है।
पुनर्नवा (हजारी प्रसाद द्वेदी):
‘लोग सत्य को जानते हैं, समझते नहीं। और इसीलिए सत्य कई बार बहुत कड़ुवा तो लगता ही है, वह भ्रामक भी होता है।’
एक बेहतरीन उपन्यास जिसमे १६०० वर्ष पूर्व, समुद्रगुप्त के शासन का लेखा जोखा है। इस उपन्यास की सबसे बड़ी विशेषता ये है कि ये कई भागों में बटी है और सारे भाग धीरे धीरे आपस में जुड़ते हैं। पाठक की उत्सुकता बनी रहती है की आगे क्या होने वाला है। ऐसा लगता है कि सारे भाग धीरे धीरे केंद्र में सरक रहे हैं और उपन्यास की समाप्ति के साथ उनकी यात्रा भी समाप्त हो जाती है। हालाँकि द्विवेदी जी की भाषा बहुत कठिन है पर इस उपन्यास को पढ़ने का अलग ही मजा है।
मृत्युंजय (शिवाजी सावंत – 1974):
‘कर्ण का यह मानना कि भले ही कोकिला कौओं के घोंसले में ही क्यों न पली बढ़ी हो, समय आने पर वह अपनी कूक से पूरे जगत को यह बता देती है कि वह कौन है। क्या यह उनके पूरे जीवन भर के संघर्ष का ही सार नहीं है?’
कर्ण के जीवन पर लिखी गयी सर्वश्रेष्ठ पुस्तक है। शिवाजी सावंत ने वैसे तो कई उत्कृष्ट उपन्यास लिखे हैं लेकिन ये शायद उनके जीवन की सबसे महत्वपूर्ण उपन्यास है। कर्ण के जीवन का जैसा संघर्ष इस उपन्यास में दिखाया गया है वैसा शायद ही किसी और उपन्यास में मिले। कर्ण और अर्जुन के बीच की प्रतिद्वंदिता को ये पुस्तक किसी और ही स्तर पर ले जाती है। कर्ण के दृष्टिकोण से अनेकों किताबें आपको मिल जाएँगी, लेकिन मृत्युंजय विशिष्ट है।
बाणभट्ट की आत्मकथा (हजारी प्रसाद द्विवेदी – 1946):
‘वैराग्य क्या इतनी बड़ी चीज है कि प्रेम देवता को उसकी नयनाग्नि में भस्म कराके ही कवि गौरव का अनुभव करे?’ बाणभट्ट वैसे तो स्वयं बड़े प्रसिद्द व्यक्ति नहीं थे किन्तु इस उपन्यास ने उन्हें विश्व प्रसिद्द कर दिया। बाणभट्ट, निपुणिका और भट्टिनी के बीच घूमती इस कहानी को पढ़ते समय ऐसा लगता है जैसे आप भी इस कथा के एक पात्र हैं। हर्षवर्धन के शासनकाल में एक युवा जीवन के नए अनुभवों से होता हुए कैसे अपने लक्ष्य को प्राप्त करता है, इसका जीवंत वर्णन इस उपन्यास में है। बाणभट्ट की आत्मकथा का कथानायक कोरा भावुक कवि नहीं वरन कर्मनिरत और संघर्षशील जीवन-योद्धा है। उसके लिए ‘शरीर केवल भार नहीं, मिट्टी का ढेला नहीं’, बल्कि ‘उससे बड़ा’ है और उसके मन में आर्यावर्त्त के उद्धार का निमित्त बनने की तीव्र बेचैनी है।
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नीलाभ वर्मा पेशे से इंजीनियर हैं और लेखन उनका शौक़ है। इन्हें पढ़ने का शौक़ है। हिंदी साहित्य की ओर इनका विशेष झुकाव है। पौराणिक उपन्यास, स्वयंवर, के लेखक हैं। इनका ब्लॉग, धर्मसंसार, भारत का पहला धार्मिक ब्लॉग है। Blog: www.dharmsansar.com/ Twitter: @NilabhVerma
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